Sunday, February 26, 2012

आजाद रहना ही हमारा जीवन है!




आजाद रहना ही हमारा  जीवन है!


मैं आज़ाद  पंछी   हूँ
- मस्त नील गगन का,
- ऊँचे ऊँचे वृक्षों का
मत रोको मुझे
मत बांधो मुझे
उर्ढ़ने दो
खुली हवाओं में
इस द्डाल से उस द्डाल तक!

क्यों पकरते  हो?
क्यों प्यार में सहलाते हो?
क्यों बेबसी पर मुस्कराते हो?
दिल का दर्द देख नहीं पाते
तो क्यों झूठा प्रेम जताते हो?

तुमने जंगले काटे,
ऊँचे भवन बनाये,
नीर मेरा बिखरा
अंडे फूटे,
प्यासा,
ब्धावासा सा
मैं तर्ह्पा,
शरण तेरी आया,
खिढ़की  में नया घोंसला बनाया
पर तुझे यह भी रास न आया?
झट से एक पिंजरा बनवाया,
छल  से मुझे बुलाया,
पानी को  तरसता,
क्यों तेरी चाल न समझ पाया ?
प्रीतमा प्यार में चली आई,
मेरे पीछे अपनी आजादी भी गंवाई,
तू घमंड में हुआ चूर,
अपनी  लालसा में
देख न पाया प्यार हमारा !
तू ने समझा
पानी की दो बूंदों से
बाजरे की दो मुठी दानो से
चली वोह आई है,
क्या जानो तुम प्यार को,
मेरे मोह में  बंधी वोह चली आई है!!

देख के मुझे,
प्यार से वोह  कराही,
पर नादान हो तुम,
जो इसे सुख का इशारा समझा!
मेरे पंखों को जो उसने प्यार से सहलाया,
ताली बजा बजा के तुमने सब को बुलाया,
आँखों की नमी न देखी ,
प्यार की तर्ढ़प  न समझी,
देखा तो अपनी ख़ुशी देखी ,
समझा तो अपना हक समझा!

जाने दो,
उरः जाने दो,
न बांधों हमें,
वोह आसमान पुकारता है,
सूर्य के साथ चलने को मन करता है,
दिन ढलने पर अलूना में लौटने की चाहत है,
बारिश की बूँदें से पत्तों में छिपने  की ललक है,

मैं आज़ाद  पंछी   हूँ

- मस्त नील गगन का,
- ऊँचे ऊँचे वृक्षों का
मत रोको मुझे
मत बांधो मुझे
उर्ढ़ने दो
खुली हवाओं में
इस द्डाल से उस द्डाल तक!
हे मानुष,
खोल दो पिंजरा,
तोर दो बंधन,
आजाद रहना ही हमारा  जीवन है!







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