Thursday, October 24, 2013

ऐ हवा , ना रुको तुम........

ऐ हवा ,
ना रुको तुम,
बहती चलो,
संग  ले कर चलो तुम,
नयी रिश्तों की खुश्बोएं,
और
इधर-उधर बिखरी
बीती यादों की धूल.

रुक जाओंगी मैं,
अब न चलूंगी संग तुम्हारे,
कुछ देर,
अपने गुलमोहर की छाँव में बैठ,
लाल सुरख़ फूलों से
कुछ कहूँगी
और कुछ सुनूंगी।
बहुत बहकी तुम्हारे संग,
अब कुछ ठहर जाओंगी।

ऐ हवा ,
ना रुको तुम,
बहती चलो,
संग  ले कर चलो तुम,
नयी मंजिलों के सिलसिले ,
और
इधर-उधर बहके 
डगमगाए क़दमों के चिन्ह!