Thursday, September 15, 2011

मंजिल की चाह में...

बहुत दिन भटके हैं हम,
इस राह से से उस राह तक,
मंजिल की चाह में.

हर पत्थर को पूजा है,
बहुत प्यार से संजोया है,
हर ज़र्रे को आँखों में बसाया है
मंजिल की चाह में,
इस राह से उस राह तक.

हर ठोकर को अपनाया है,
होंठों से चूमा है,
धुल को काजल बनाया है,
मंजिल की चाह में,
इस राह से उस राह तक.

हर टूटी राह पर चले है,
ज़ख्मों को हंस कर सहा है,
आंसुओं से हर ग़म धोया है,
मंजिल की चाह में,
इस राह से उस राह तक.

हर वोह पल साँसों में बसे हैं,
टूटे हुए सपने आँखों से झलकते  हैं,
बिखरी हुई आशा को  समाया है,
मंजिल की चाह में,
इस राह से उस राह तक.

हर मंजिल को छु लिया है,
हँसते हँसते हर मुकाबला किया है
हर इच्छा को पूरा किया है,
पर अब न भटकेंगे हम,
इस राह से से उस राह तक,
क्यूंकि मंजिल की चाह में
मंजिल को पा लिया है!








Thursday, September 8, 2011

तरस गए हम....

तरस गए हम,
मौसम न जाने बदलेगा कब,
गरम हवाओं  से थक गए हम,
यह बादल जाने बरसेगा कब ?

तरस गए हम,
अन्धकार छटेगा  कब,
सनसनी आवाजों से डर गए हम,
यह सूरज जाने निकलेगा कब?

तरस गए हम,
 सन्नाटा  टूटेगा कब,
खामोशियों से घबरा गए हम,
प्यार का गीत सुनेगा कब?

तरस गए हम,
एकेलापन छूटेगा कब,
तनहाइयों में रो पढ़े हम,
साथ तेरा मिलेगा कब?

तरस गए हम,
इंतज़ार ख़तम होगा कब,
राह तकते तकते थक गए हम,
दीदार तेरा होगा कब?